गर्भपात का आयुर्वेदिक होने के साथ – साथ घरेलु और एक दम रामबाण इलाज, वो भी बिना किसी डॉक्टर की साहयता के अपने डॉक्टर बने खुद?

गर्भपात का आयुर्वेदिक उपचार

गर्भपात/ Miscarriage का आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार

समय पूर्व प्रसव, अर्थात समय से पहले ही गर्व का गर्भवती के शरीर से बाहर निकलना, गर्भपात कहलाता है, क्योंकि तीन-चार महीने तक भ्रूण में हड्डी एवं मांस प्रेशर नहीं बनी होती, इसलिए यह रक्त के रूप में योनि से स्रावित हो जाता है, बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार हर माह महिला को मासिक धर्म का होना होता है, यह एक असामान्य स्थिति है तथा इसी स्थिति को गर्भपात/ Miscarriage कहते हैं,  गर्भवती महिला के शरीर में पल रहा गर्भ नष्ट हो जाता है, इतना ही नहीं कर पाते कारण शरीर में कई तरह की विकृतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। आइए जानते हैं गर्भपात एवं इसके होने के कारणों के बारे में –

गर्भपात क्या होता है?

आयुर्वेद की मानें तो गर्भपात होने का मुख्य कारण “वात दोष” है, क्योंकि हमारा शरीर  वात, पित्त और कफ के सिद्धांतों पर काम करता है, आयुर्वेद के अनुसार किसी भी जीव के शरीर में जब वात पित्त और कफ त्रिदोषों का असंतुलन हो जाता है, तो हमारे स्वास्थ्य में विकृतियां आनी शुरू हो जाती है, गर्भपात भी इन्हीं त्रिदोषों में से एक “वात दोष” के असंतुलन के कारण होता है, 80-85 % गर्भपात 0-15 सप्ताह में हो जाता है। यदि किसी महिला को अनुवांशिक अनियमितता बनी हुई है तो गर्भपात 0-13 सप्ताह के बीच में ही हो जाता है। 

गर्भपात का सबसे अधिक खतरा  0-6 सप्ताह के मध्य में होता है, क्योंकि इन दिनों में गर्भपात होने की आशंका बहुत ज्यादा होती है जिसमें महिलाओं को पता नहीं चलता है कि वो प्रेग्नेंट है या मासिक धर्म की अनियमितता है। इसी बात को अगर इस तरह कहे कि गर्भधारण के शुरुआती 3 महीनों में महिला को चाहिए कि वह अपनी विशेष देखभाल करें, क्योंकि यह शुरुआती 3 महीने गर्व के लिए  बहुत ही संवेदनशील होते हैं, कई महिलाएं तो इन पहले 3 महीनों में अपने गर्भ ठहरने की स्थिति से भी अनभिज्ञ होती हैं, जिसके कारण वे कई ऐसी अनुचित गतिविधियों में सम्मिलित हो जाती है जिनके कारण अनजाने में ही गर्भवती स्थिति बन जाती है ।

गर्भपात के लक्षण?

किसी महिला को जब गर्भपात होना होता है, तो कभी-कभी उसके लक्षण प्रकट नहीं होते, लेकिन ज्यादातर परिस्थितियों में उसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं, यदि समय रहते हम उन लक्षणों को ध्यान देकर  विचार एवं उपचार की व्यवस्था करें,तो समय रहते इस असामान्य परेशानी से खुद को बचा सकते हैं, आइए जानते हैं उन्हें लक्षणों के बारे में, जो गर्भपात से पहले शारीरिक परिवर्तन के आधार पर  हमें महसूस होते हैं-

* महिला को अचानक गर्भाशय में दबाव महसूस होने लगता है, यह दबाव अंदरूनी होता है , जिसको महिला अनदेखा कर देती है , यह सोच कर कि यह दबाव गैस के कारण बना है, लेकिन गर्भ के दौरान कभी भी इस तरह के किसी भी दबाव को हल्के में लेना नासमझी है जो आगे चलकर आपके गर्व के लिए घातक हो सकती है ।

* बच्चेदानी फटने के कारण बच्चेदानी से अचानक पहले कम फिर अधिक हल्का चिपचिपा पानी निकलने लगता है, जो गर्भपात के शुरुआती स्थिति है, यदि समय रहते इसका उपचार ने किया जाए तो, महिला को गर्भपात का दंश झेलना पड़ सकता है।

* कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान  जिस दौरान योनि के रास्ते खून के धब्बे आने लगते हैं, यह दर्द के साथ भी हो सकते हैं और बिना दर्द के भी, इसी को कभी भी सामान्य ना लें,  यह एक असामान्य घटना है, जो गर्भपात के पहले की स्थिति है और भ्रूण दर्द के बिना गर्भ से बाहर निकल जाता है।

* पेट के निचले हिस्से में ऐंठन एवं पेट के निचले हिस्से में दर्द होना गर्भपात के प्रमुख लक्षणों में से एक है।

ऊपर दिए गए लक्षणों के आधार पर यदि किसी भी प्रकार की आपको परेशानी हो रही है या लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो आपको चाहिए कि तुरंत  प्रसूति विशेषज्ञ से संपर्क करें, क्योंकि इस समय पर की गई थोड़ी भी देरी आपके गर्भ के लिए  घातक सिद्ध हो सकती है, इस समय पर आपकी सूझबूझ एवं समझदारी ही आपके गर्भ की रक्षा कर सकती है, बिना किसी विलंब के आपको तुरंत अपने  स्वास्थ्य का परीक्षण एवं उपचार की व्यवस्था करनी जरूरी है ।

गर्भपात के कारण?

गर्भपात के कारण

ज्यादातर गर्भपात गर्भाशय की कमजोरी के कारण ही होता है, क्योंकि जिन महिलाओं का गर्भाशय एवं गर्भाशय की दीवारें आवश्यकता से अधिक कमजोर होती है, तो उनमें लगातार गर्भपात की स्थिति बनी रहती है और उनको लगातार गर्भपात होता भी रहता है, यह उन में अनुवांशिक भी हो सकता है और इसके कई और भी कारण हो सकते हैं, आइए जानते हैं कुछ उन कारणों के विषय में जो गर्भपात के लिए जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि जब तक हमें गर्भपात होने के कारणों के विषय में ज्ञान नहीं हो होगा तब तक ना तो हम इस परिस्थिति को रोक सकते हैं, और न ही इसका कोई सफल उपचार ही करा सकते हैं,

* हार्मोनल डिसबैलेंस- 
हार्मोनल डिसबैलस कि समस्याएं जैसे प्रोजेस्ट्रान की कमी या एस्ट्रोजन की अधिकता के कारण गर्भपात की परिस्थिति बन जाती है, क्योंकि शरीर में हो रहे रचनात्मक कार्य हारमोंस के आधार पर ही होते हैं, लेकिन यदि हारमोंस डिसबैलेंस हो जाए तो यह शरीर की रचनात्मकता को  प्रभावित करते हैं, जिनके कारण गर्भपात जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है।

* उम्र का अधिक होना-
क्योंकि गर्भ धारण के लिए उम्र की अधिकता होना अपने आप में एक समस्या है, जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे शरीर में हारमोंस भी डिसबैलेंस होने लगते हैं, क्योंकि शरीर की पकड़ शरीर के अंदर आने वाले बाहरी तत्वों पर कमजोर पड़ने लगती है, यही कारण है कि  उम्र की अधिकता के कारण भी गर्भपात की स्थिति अधिक मात्रा में बनने लगती है।

* ब्लड ग्रुप-
यदि किसी गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप आर.एच निगेटिव  RH Negative है और बच्चे का ब्लड ग्रुप RH Positive है, तो भी गर्भपात की समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि बच्चे की रक्त कोशिका (Blood Cells) माँ के खून से मैच नहीं कर पाती है जिसके कारण गर्भपात होने की आशंकाएं बढ़ जाती है।

* खून की कमी-
कुछ महिलाओं में खून की बहुत अधिक कमी होने के कारण, गर्भपात की समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिन महिलाओं में खून की कमी अधिक होती है , उन महिलाओं में  गर्भपात होने का खतरा सामान्य महिलाओं की अपेक्षा  80 परसेंट तक बढ़ जाता है , अर्थात हमें गर्भवती महिलाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनको खून की कमी ना होने पाए।

* अनुवांशिक अनियमितता-
अनुवांशिकता भी गर्भपात का एक मुख्य कारण है क्योंकि क्रोमोसोम्स का अनियमित होना गर्भ को बहुत हद तक प्रभावित करता है, जिसकी अनदेखी करना घातक हो सकता है।

* दवाइयों का अधिक प्रयोग-

किसी भी बीमारी के चलते, दवाइयों का अधिक प्रयोग महिलाओं के पेट में पल रहे गर्भ के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है, इस बात का विशेष ध्यान रखें कि गर्भ के दौरान किसी भी दवाई का प्रयोग बगैर की डॉक्टर की सलाह के ना करें।

* शराब एवं मदिरापान-
शराब एवं मदिरापान करना गर्व के लिए न तो उचित है, और ना ही सामान्य क्योंकि शराब और मदिरा का इस्तेमाल जहां एक और गर्भपात की समस्या पैदा कर सकता है, वहीं दूसरी ओर गर्भ में पल रहे बच्चे मैं शारीरिक एवं मानसिक विकृतियां भी पैदा कर सकता है। 

* चोट लगने के कारण-
चोट लगना या आघात लगना, यह शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप में हो सकता है, शारीरिक चोट के साथ-साथ मानचित्र चौधरी हमारे शरीर के सभी हिस्सों को प्रभावित करती है,  यदि किसी गर्भवती महिला को पेट के ऊपर चोट लग जाए तो इससे भी गर्भपात होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं।

* मानसिक तनाव-
मानसिक तनाव के कारण भी कई बार गर्भपात की समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि हमारा दिमाग  हमारे संपूर्ण शरीर को कंट्रोल करता है, लेकिन यदि दिमाग  हमारे शरीर को कंट्रोल नहीं कर पाता तो ऐसी स्थिति में गर्भपात की परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है ।

* तंबाकू का सेवन-
तंबाकू का सेवन हमारे शरीर के साथ साथ गर्भ में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है, और कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में यह है  गर्भपात का कारण भी बन जाता है, इसलिए गर्भवती महिला को चाहिए कि वह धूम्रपान से दूर ही रहे जो स्वयं उसके एवं उसके  गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए लाभकारी होगा।

* शुगर की बीमारी-
शुगर की बीमारी जिन महिलाओं में होती है, उन महिलाओं में गर्भ की ठहरने की समस्या बनी रहती है, तथा गर्भ ठहरने के बाद गर्भपात की आशंका भी बनी रहती हैं।

* थायराइड-
थायराइड एक ऐसी बीमारी है जिसके चलते महिला गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होती और यदि कोई महिला गर्भधारण कर भी लेती है, तो उनका गर्भपात होने की आशंका सामान्य महिला की अपेक्षा 90 परसेंट अधिक होती हैं । इसलिए थायराइड से पीड़ित महिला को चाहिए कि वह हमेशा किसी प्रशिक्षित एवं तजुर्बे कार डॉक्टर की देखरेख में ही अपने गर्भ को संरक्षित करे ।

* खानपान –
गर्भावस्था के दौरान महिला को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि गर्भवती महिला का खानपान ही उसके गर्व का भविष्य तय करता है, निश्चित समय निश्चित मात्रा एवं निश्चित पौष्टिकता ही गर्भधारण, गर्भपात, गर्भ का भविष्य, एवं उसका स्वयं का स्वास्थ्य भी उसके खानपान पर निर्भर करता है।

गर्भधारण से पहले एवं गर्भ के दौरान अपनाए जाने वाली सावधानियां?

 गर्भ के दौरान अपनाए जाने वाली सावधानियां

जिनके आधार पर हर महिला स्वयं को एवं अपने गर्भ को पूर्णता स्वस्थ रख सकती हैं, आइए जाने उन बातों को जो हर महिला के लिए बहुत ही आवश्यक है जिनको अपनाकर एक स्वस्थ एवं सामान्य परेशानी रहित प्रसव कर सकती है।*

* प्रत्येक महिला को चाहिए कि वह  गर्भधारण से पूर्व गर्भधारण करने के लिए अपने शरीर को पूर्ण रूप से  तैयार करें। क्योंकि गर्भ के लिए गर्भावस्था के पूर्व की गई तैयारियां गर्भावस्था के दौरान होने वाली परेशानीयों से आपको बचाएगी ।

* गर्भधारण करने के लिए और गर्भपात से बचने के लिए महिला को चाहिए कि वह प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाले पौष्टिक आहार अधिक मात्रा में सेवन करें।

* गर्भपात से बचने के लिए गर्भवती महिला को चाहिए कि वह अपने हाथ से अपने पेट की प्रत्येक रात्रि सोने से पहले हल्के हाथ से मालिश जरूर करें।

* गर्भवती महिला को चाहिए कि वह अपने मानसिक तनाव को तनाव दूर रखने के लिए शरीर को पूरी तरह से आराम दें।

* गर्भवती महिला को चाहिए कि वह गर्भपात से बचने के लिए रोज 600 आई.यू विटामिन-ई युक्त पदार्थ को ज्यादा खाए, यदि आपको हाई बी.पी., हृदय रोग या शुगर है तो केवल 50 आई.यू विटामिन-ई ही ले।

* एक बात का हमेशा विशेष रुप से ध्यान रखें कि कोई भी गर्भवती महिला आवश्यकता से अधिक भारी समान को एकदम से न उठाएं। चौकी एकदम से झटके के साथ उठाया गया वजन आपके और आपके गर्भ दोनों ही के लिए खतरनाक हो सकता है,  गर्भावस्था में अधिक भारी वजन उठाना गर्भपात का कारण बन सकता है।

* गर्भवती महिलाएं अपने  खाए जाने वाले भोजन की पौष्टिकता का विशेष ध्यान रखें तथा उन्हें जंकफूड, तेल, मिर्च-मसाला से परहेज रखें तो अधिक बेहतर है ।

* गर्भवती महिला एवं उसके पति  दोनों को ही इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि नियमित रूप से समय-समय पर प्रशिक्षित एवं अनुभवी डॉक्टर प्रशिक्षित दाई से  चेकअप कराते रहे।

गर्भपात से बचने के लिए कुछ आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय?

गर्भपात से बचने के लिए कुछ आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

जिन्हें हम आसानी के साथ अपने घर पर बिना किसी डॉक्टर एवं वैद्य की सलाह के भी कर सकते हैं, आइए जानते हैं कुछ उन आयुर्वेदिक एवं घरेलू नुस्खों के बारे में जो गर्भपात जैसे गंभीर परिस्थिति में हमें गर्भपात जैसी समस्या से छुटकारा दिला सकते हैं।

* गर्भपात से बचने के लिए करें अनार के पत्तों का प्रयोग –
यदि किसी गर्भवती महिला को अचानक से रक्त बात होने लगे तो जितना जल्दी हो सके उसे अनार के हरे पत्तों का जूस निकालकर बिना नमक या मीठा मिठाई पिलाना चाहिए । प्रयोग विधि :- सौ ग्राम अनार के हरे पत्तों का जूस निकाल ले इस जूस को रक्तस्राव से पीड़ित गर्भवती महिला को पिला दे, तथा बचा हुआ पत्तों का पेस्ट गर्भवती महिला के नाभि के निचले हिस्से पेडू के ऊपर लेफ्ट कर दें । कुछ ही देर में रक्त स्राव बंद हो जाएगा।

* हरेला के पत्ते करें गर्भपात पर पूर्ण नियंत्रण –
हरेला की बेल बिल्कुल करेला की बेल की जैसी होती है, इसके पत्ते तथा फूल दोनों ही बिल्कुल करेला के पत्ते और फूल के जैसे ही होते हैं, इसके पत्तों का स्वाद करेला के पत्तों से भी कड़वा होता है, तथा इसके पत्ते करेला के पत्ते की अपेक्षा थोड़े सख्त भी होते हैं।तीन से चार हरेला के पत्ते चबाकर खाएं तथा इसके साथ स्वाद के लिए थोड़ी सी मिश्री भी खा सकते हैं, लगातार तीन दिन सुबह-शाम इसके सेवन से गर्भवती महिला को होने वाला रक्त स्राव पूर्ण रुप से बंद हो जाता है, यह औषधि गर्भपात के खतरे को बिल्कुल खत्म कर देती है।

* गर्भपात की हो आशंका तो करें फिटकरी का इस्तेमाल –

जिन महिलाओं को गर्भपात की आशंका बनी हुई है उन्हें चाहिए कि वह एक चम्मच गुलाबी फिटकरी का पाउडर ले इसे कच्चे दूध के साथ मिलाकर लेने से, कुछ ही मिनटों में रक्तस्राव रुक जाता है।

* गर्भपात मुलेठी के फायदे –
जिस महिला को गर्भपात की आशंका बन रही है, उसके लिए मुलेठी बहुत ही फायदेमंद हो सही है, एक गिलास ठंडे दूध के साथ एक चम्मच मुलेठी पाउडर के सेवन से गर्भपात का डर नहीं रहता, यह प्रयोग लगातार दिन में 1 बार 3 दिन तक करें।

* पलाश के पत्ते-
यदि किसी गर्भवती महिला को पलाश के पत्तों का नियमित रूप से सेवन कराया जाए, तो गर्भपात की परेशानी से बचा जा सकता है, 
सेवन विधि :- जैसे ही मालूम चले कि महिला ने गर्भ धारण कर लिया है, गर्भवती महिला को पहले महीने में एक पलाश का पत्ता रोजाना दूध के साथ, दूसरे महीने में दो पलाश के पत्ते, तीसरे महीने में तीन पलाश के पत्ते, चौथे महीने में 4 प्लस के पत्ते, पांचवे महीने में 5 प्लस के पत्ते, तथा छठे महीने में 6 प्लस के पत्ते हर रोज दूध के साथ सेवन कराई जाएं, तो गर्भपात की समस्या पूर्णतय समाप्त हो जाती है। यह प्रयोग पहले महीने से छठे महीने तक करना अनिवार्य है।

* संतरा –
गर्भवती महिला को हर रोज एक संतरा अवश्य खिलाएं, संतरा में विटामिन सी की मात्रा भरपूर होती है, इसके सेवन से गर्भपात की समस्या से छुटकारा मिलता है।

* चूना –
गेहूं के दाने के बराबर शुद्ध गीला चूना हर रोज दूध के साथ मिलाकर गर्भवती स्त्री को खिलाना चाहिए, यह गर्भवती के बच्चेदानी को मजबूत बनाता है एवं गर्भवती स्त्री में कैल्शियम की कमी को पूरी करता है, जो गर्भवती महिला एवं उसके गर्भ में पल रहे बच्चे दोनों ही के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।

*विशेष :- ऊपर दिए गए सभी प्रयोग वैसे तो बहुत ही सुरक्षित एवं कारगर है, लेकिन किसी तरह का भी खतरा उठाने से बचें, और गंभीर परिस्थिति में हो इसके लिए, प्रशिक्षित एवं अनुभवी महिला प्रसूति डॉक्टर से जरूर परामर्श करें, क्योंकि औषधि अपना काम तभी पूर्ण रूप से करती हैं जब उन्हें संतुलित एवं सही मात्रा में सेवन किया जाए।